इमाम हुसैन की शहादत आज दुनिया भर में इंसानियत का पैगाम दे रही है

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जनपद फर्रुखाबाद इस्लाम धर्म के मुताबिक नए साल की शुरुआत हो चुकी है. मुहर्रम इस्लामिक कैलेंडर के हिसाब से पहला महीना है. मुहर्रम को आम लोग एक महीना नहीं बल्कि एक पर्व या एक खास दिन के तौर पर मानते हैं आइए आपको बताते चलते हैं कि मोहर्रम क्या है और क्यों मनाया जाता है आखिर इस महीने को गम का महीना क्यों कहा जाता है. आज हम आपको इस बारे में विस्तृत में जानकारी देते हैं दरअसल मुहर्रम इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक साल का पहला महीना है.

इसी महीने के साथ इस्लामिक साल की शुरुआत होती है. वैसे तो ये एक महीना है लेकिन इस महीने में मुसलमान खास तौर पर शिया मुसलमान पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के नवासे की शहादत का गम मनाते हैं सन 61 हिजरी (680 ईस्वी) में इराक के कर्बला में पैगंबर मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन को उनके 72 साथियों के साथ शहीद कर दिया गया था.

मुहर्रम में इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत का गम मनाते हैं क्योंकी इस महीने में पैगंबर के नवासे की शहादत हुई थी, इसीलिए इस महीने को गम का महीना कहा जाता है जगह-जगह मजलिसे होती हैं मुहर्रम में शिया मुसलमान इमाम हुसैन की शहादत का जिक्र करते हैं. उनका गम मनाने के लिए मजलिसें करते हैं.

मजलिसों में इमाम हुसैन की शहादत बयान की जाती है मजलिस में तकरीर करने के लिए ईरान से भी आलिम (धर्मगुरू) आते हैं और जिस इंसानियत के पैगाम के लिए इमाम हुसैन ने शहादत दी थी यही धर्मगुरु मजलिस में सभी को बताते हैं तो वही फर्रुखाबाद में भी मोहर्रम की 1 तारीख से मजलिस की जा रही है