अभिनेता नहीं साक्षात परशुराम कहिए

171

समूचे उत्तर भारत में विख्यात रहे हैं, परशुराम का किरदार निभाने वाले अभिनेता।

तेज नारायण गुप्ता

कानपुर नगर घाटमपुर बल शौर्य अभिनय और वाकपटुता की वजह से हुए है मशहूर,कहा जाता है, कि जिसने परशुराम लक्ष्मण संवाद नहीं देखा,उसने कुछ नहीं देखा,दो दिव्य शक्तियों का रोमांच भरा अभिनय और संवाद ही रामलीलाओं को जीवंत बनाता है इन दो दिव्य शक्तियों में परशुराम का अभिनय करने के मामले में कानपुर महानगर धनी है। कुछ कलाकारो के अभिनय करने की मिसालें दी जाती है, इस अंक में ऐसे पांच अभिनेताओं का जिक्र करेंगे, जिन्हें साक्षात परशुराम कहते है लोग जिन्होंने दशको तक दर्शकों के दिल में राज किया है।

व्यास नारायण बाजपेई, मंच में इनका रौद्र रूप देखकर जनता जय- जयकार करने लगती थी कानपुर देहात-गजनेर निवासी व्यास नारायण बाजपेई इनकी थरथराती आवाज लोगो में रोमांच पैदा करती थी। पंडित बाबूलाल अवस्थी, मोटी जांघे, चौड़ी छाती भुजाओ की मछलियां शरीर के बल का अहसास कराती थी, घाटमपुर परास निवासी पंडित बाबूलाल अवस्थी इन्हे तखत तोड़ परशुराम कहा जाता था। आचार्य गोरेलाल त्रिपाठी, जटाधारी शिव प्रतिमूर्ति लक्ष्मण का अभिनय करने वाले सख्स को इस बात पर पसीना छूट जाता था कि उनकी टक्कर गोरे लाल से होनी है।

देव नगर कानपुर निवासी थे। डॉ राजेंद्र प्रसाद त्रिपाठी, परशुराम के अभिनय में त्रिपाठी जी ने खूब ख्याति कमाई पड़री घाटमपुर के रहने वाले थे। शिवदत्त लाल अग्निहोत्री, मंच पर हिमालय का बैकग्राउंड और एक पैर के बल हाथ उठाकर कर तप करने की शुरुवात इन्हीं की देन है। क्रोध की वजह से संगीत संवाद बोलने की वजह से लोगो के बीच नये अभिनेता का जन्म हुआ था।